अपनी आत्मा को झाँककर देख ,
भगवान तुम्हें अवश्य ही दिखेगा ।
पूर्ण विश्वस्त हो ढंग से तुम देख ,
तुम्हारा हृदयकमल खिल उठेगा।।
भगवान रहता है कहीं भी नहीं ,
वह सदा हमारे तुम्हारे ही पास है ।
ईश्वर भी होते हैं वैसे ही अदृश्य ,
जैसे वायु सदा हमारे आसपास है।।
ढूँढ़ते रहते हम दूसरों में ही कमी ,
अपनी कमी हम ढूँढ़ते कहाँ हैं ।
डूबे हुए हैं अहंकारों में ही कहीं ,
और पूछते हैं भगवान कहाँ हैं ?
भगवान आते हर किसी के पास ,
हम पहचान ही तो नहीं पाते हैं ।
आते हैं भगवान इंसान महान बन,
जिन्हें दुत्कार कर हम भगाते हैं।।
जिसने पहचाना इंसान ही नहीं ,
वह भगवान को क्या पहचानेगा ।
जो मानव है झूठे सुख में खोया ,
लोभ शोषण छोड़ क्या जानेगा ।।
लक्ष्मी आतीं नहीं अहंकार लेकर ,
किन्तु मन में अहम् छा जाता है ।
बढ़ी आकांक्षा दौलत की और भी,
दौलत से मन भर नहीं पाता है ।।
कोई फँसा है स्वार्थ में ही अपने ,
कोई अपने स्वजाति में फँसा है ।
कोई फँसा राजनीत दलगत में ही,
तीनों ने मानव जीवन को डँसा है।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना ।
Haaya meer
29-Mar-2022 10:13 PM
बहुत ही अच्छा
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Gunjan Kamal
29-Mar-2022 10:12 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌🙏🏻
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